मुहम्मद गौरी से लेकर इन सबकी थी काशी विश्वनाथ मंदिर पर बुरी नज़र, जानिए कितनी बार तोड़ा गया था मंदिर

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काशी विश्वनाथ मंदिर जिसके दर्शन को पूरी दुनिया तरसती है काशी को भगवान शिव की नगरी के नाम से भी जाना जाता है लाखों करोड़ों लोगों के मन से जुड़ा है काशी विश्वनाथ मंदिर लेकिन क्या आप जानते है इतिहास में किन किन लोगों ने इस मंदिर के साथ खिलवाड़ किया और इसे लूट कर कितनी बार उसे तोड़ा गया । कहा जाता है कि राजा हरीशचन्द्र के बाद सम्राट विक्रमादित्य ने इस मंदिर की मरम्मत करवायी थी। लेकिन शुरू से ही इस मंदिर पर गौरी की बुरी नज़र रही और उसने 1194 में इस भव्य मंदिर को लूटने के बाद तुड़वाया था।

मुहम्मद गौरी द्वारा इस मंदिर को तोड़ने के बाद इस मंदिर को फिर से बनवाया गया , लेकिन भारत की धरोहर किसी भी मुग़ल शासक को बर्दाश्त नहीं हो रही थी इसलिए जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह ने इसे फिर से तुड़वा दिया। इसके बाद अकबर के नवरत्न कहे जाने वालों में से एक राजा टोडरमल ने 1585 में इसका इसको दुबारा बनवाया । भारत की इस भव्य धरोहर को शाहजहाँ भी देख कर तिलमिला गया था । और उसको यह मंदिर फिर तुड़वाना न था और उसने सन् 1632 में इसे तोड़ने के लिए सेना भेज दी। लेकिन इस बार हिन्दुओं ने ठान लिया वो ऐसा कुछ नही होने देंगे और हिंदू दिवार बन कर उनके रास्ते में खड़े हो गये और मुगल सेना मुख्य विश्वनाथ मंदिर को नहीं तोड़ पायी । लेकिन इतनी कोशिशों के बाद भी उन्होंने काशी के 63 अन्य मंदिर तोड़ डाला।

लेकिन कहानी यहा ख़त्म नहीं हुई ये मंदिर हर मुग़ल आक्रमणकारी के आँखो का चुभता काँच बन चुका था इसलिए ,शाहजहां के विफल होने के बाद औरंजेब ने 18 अप्रैल 1669 को काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़ क़र एक मस्जिद बनाने का आदेश दे दिया और वो फिर काशी की तरफ़ बढ़ने लगे। और कहा जाता है ये आदेश ये आज भी कोलकाता की एक एशियाटिक लाइब्रेरी में सुरक्षित है। लेखक साकी मुस्तइद खां के ‘मासीदे आलमगिरी’ में इसका उल्लेख है। औरंगजेब के आदेश पर यहां मंदिर तोड़कर मस्जिद बना दी गयी।

जिस तरह से बार-बार मंदिर को तोड़ा जा रहा था इससे हिंदुओं में काफ़ी ग़ुस्सा था। सन 1752 के बाद मराठा सरदार दत्ताजी सिंधिया और मल्हारराव होलकर ने मंदिर को बचाने का खूब प्रयास किया और इससे बनवाने में जुट गये ,लेकिन उस समय काशी पर ईस्ट इंडिया कंपनी का राज हो गया और मंदिर को फिर से बनवाने का काम रुक गया। लेकिन फिर भी हार नहीं मानी गयी और इंदौर की महारानी अहिल्याबाई ने 1777-78 में इस मंदिर को फिर से खड़ा किया । इसके बाद पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने इसके शिखर पर सोने का छत्र बनवाया और फिर नेपाल के राजा ने विशाल नंदी की प्रतिमा स्थापित की । इतना कुछ हुआ लेकिन आज एक बार फिर इस मंदिर को खड़ा कर दिया और अब इसके ऊपर किसी की बुरी नज़र पड़े ये मुमकिन नहीं है।