आज रूस के युक्रेन पर हमले का पांचवा दिन है रूस ने युक्रेन के कई शहरों और कई सैन्य ठिकानों को भारी नुकसान पहुँचाया है तबाही का ये नजारा सच में भयावह है . इस तरह रूस युक्रेन पर टूटा युक्रेन का रुसी सेना को जवाब देना काफी मुश्किल हो रहा था . युक्रेन ने वैसे तो अपनी पूरी ताकत रुसी सेना को हराने में लगा दी है और ये बात भी सच है कि इस समय रुसी सेना का भी बुरा हाल हो रहा है . लेकिन फिर भी ये लड़ाई युक्रेन पर ज्यादा भारी पड़ रही है युक्रेन को लगा था की ‘नाटो ‘ उसके साथ खड़ा रहेगा उसकी तरफ से लड़ने आएगा लेकिन नाटो ने आखिरी मौके पर ही युक्रेन का हाथ झटक दिया . युक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने नाटो देशों सहित अमेरिका पर निशाना लगाते हुए कहा कि रूस के साथ लड़ाई में हमें अकेला छोड़ दिया गया . आगे उन्होंने कहा कि इस नेताओं ने रूस से डर कर युक्रेन को नाटो में शामिल नहीं किया . युक्रेन मदद की आस लिए सभी देशों का मुहं निहार रहा है . लेकिन युक्रेन की ये हालत कहीं न कहीं उसी की गलती की वजह से है जो उसने 28 साल पहले की थी . 1994 में .
जी हाँ ! एक समय वो भी हुआ करता था जब युक्रेन दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी परमाणु शक्ति हुआ करता था . उसने खुद ही अपने हथियारों को त्याग दिया या यूं कहें नष्ट कर दिया . हुआ कुछ यूं था कि दूसरे विश्व युद्ध के खत्म होते ही शीत युद्ध शुरू हो गया था . यह युद्ध अमेरिका और पुराने रूस यानि सोवियत संघ के बीच था . दरअसल सोवियत संघ उस समय अमेरिका पर दवाब बनाना चाहता था . इसलिए रूस ने अपने परमाणु हथियार युक्रेन में तैनात किये थे . ताकि वह हर तरफ से मजबूत रहे इसकी के हाथ जब 1991 में सोवियत संघ टूटा तो अमेरिका और उसके बीच का शीत युद्ध भी खत्म हो गया . जब सोवियत संघ टूटा तो रूस के द्वारा युक्रेन में तैनात किये गए एक तिहाई परमाणु हथियार युक्रेन में ही रह गये . और युक्रेन स्वतंत्र होने के साथ विश्व की तीसरी सबसे बड़ी परमाणु शक्ति बन गया .
उस समय युक्रेन के पास इतने परमाणु हथियार थे की वो चाहता तो शहरों के शहर तबाह कर सकता था लेकिन युक्रेन ने पश्चिमी देशों पर विशवास कर अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली . दरअसल हुआ कुछ यूं था कि 5 दिसंबर 1994 में हंगरी की राजधानी बुडापेस्ट में अमेरिका , युक्रेन , बेलारूस ,ब्रिटेन और कजाखस्तान के नेताओं ने एक बैठक की . इन देशों ने मिल कर एक बुडापेस्ट नामक समझौता तैयार किया जिसके अनुसार युक्रेन को अपने पास मौजूद परमाणु हथियारों , डिलवरी सिस्टम जैसे बमवर्षक और मिसाइलों को पश्चिम देशों से पैसों की मदद लेकर अपने हथियार नष्ट करने थे . जिसके बदले इन देशों ने युक्रेन को इस बात की गारंटी दी कि अगर उनके ऊपर भविष्य में किसी देश द्वारा आक्रमण हुआ तो ये देश युक्रेन का साथ देंगे और ऐसा कुछ भविष्य में नहीं होगा युक्रेन के साथ इस बात की गारंटी भी अमेरिका बी, ब्रिटेन , फ़्रांस और रूस जैसे देशों ने दी थी . समझौते को ‘बुडापेस्ट मेमोरेंडम’ का नाम दिया गया है . इस समझौते को बिना विचार विमर्श किये मान लेना आज युक्रेन की सबसे बड़ी भूल साबित हो रहा है . यही वो गलती थी जिसके चलते आज युक्रेन इतना कमजोर पड़ रहा है और आज उसे पछतावा हो रहा होगा की युक्रेन ने इन देशों पर भरोसा किया .
एक रिपोर्ट FAS (फेडरेशन ऑफ अमेरिकन साइंटिस्ट ) के मुताबित युक्रेन के पास करीब 3,000 सामरिक परमाणु हथियार जो बड़ी सैन्य सुविधाओं बख्तरबंद उर नौसैनिक बेड़े को तबाह करने के लिए थे . साथ 2000 रणनीतिक हथियार भी युक्रेन के पास थे जो शहर के शहर तबाह कर सकते थे .