सरदार पटेल ने इस तरह 500 से ज्यादा रियासतों को जोड़ कर किया था अखंड भारत का निर्माण

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जब अंग्रेजों के भारत छोड़ने का समय आया तो उन्होंने देश को तीन हिस्सों में बांट दिया था. भारत का पश्चिमी हिस्सा मगरिबी पाकिस्तान बना तो पूर्वी हिस्सा मशरिकी पाकिस्तान कहलाया. यही पूर्वी हिस्सा अब बांग्लादेश के नाम से जाना जाता है. इस बंटवारे के बाद 550 से ज्यादा छोटी-बड़ी रियासतों को मिलाकर भारत को एक देश बनाया गया. बंटवारे से पहले हिंदुस्तान में 579 रियासतें थीं. इसमें कई स्वतंत्र राज्य और रियासतें शामिल थीं. कुछ रियासतें तो चंद गांवों तक सिमटी हुई थीं. इन सभी को खत्म किया गया और राज्यों का गठन करते हुए भारत संघ की कहानी लिखी गयी.अंग्रेजों के अंतिम वायसराय लुइस माउंटबेटन थे. जिन्होंने बंटवारे के दौरान सभी राज्यों और रियासतों को कहा कि वे भौगोलिक स्थिति के अनुकूल भारत या पाकिस्तान में शामिल हो जाएँ या फिर स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में अस्तित्व में आ जाएँ. साथ ही चेतावनी भी दी गई कि 15 अगस्त के बाद उन्हें ब्रिटेन से कोई मदद नहीं मिलेगी. अधिकांश राजाओं ने इस सलाह को मान लिया. उस वक्त रियासतों के विलय का काम देश के पहले गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल और वीपी मेनन को सौंपा गया था. सरदार पटेल ने भारत के एकीकरण में अतुल्य योगदान दिया है.

लुइस माउंटबेटन के इस बयान ने किया था फूट डालने का काम

माउन्टबेटन के स्वतंत्र रहने वाले बयान से प्रेरित होकर कुछ रियासतों ने खुद को स्वतंत्र रखने का मन बनाया. वे स्वतंत्र भारत में अपना अलग अस्तित्व बनाये रखना चाहते थे. आजादी के समय अंग्रेजों ने हमें एक टूटा-फूटा राष्ट्र दिया था. जिसको एक शक्तिशाली और अखण्ड भारत बनाना था. जब 1947 में भारत को स्वतंत्रता मिली उस समय भारत के अन्तर्गत तीन तरह के क्षेत्र थे-

ब्रिटिश भारत के क्षेत्र( ये भारत के गवर्नर-जनरल के सीधे नियंत्रण में थे.)

देसी राज्य

और फ्रांस व पुर्तगाल के औपनिवेशिक क्षेत्र (चन्दननगर, पाण्डिचेरी, गोवा आदि).

इन रियासतों ने स्वतंत्र रहने का लिया था फैसला

ये देशी रियासतें स्वतंत्र शासन में यकीन रखती थी जो सशक्त भारत के निर्माण में सबसे बडी़ बाधा थीं. हैदराबाद, जूनागढ़ और कश्मीर. हालाँकि भोपाल, त्रावणकोर और जोधपुर की रियासत भी भारत में शामिल नहीं होना चाहती थीं. लेकिन बाद में वह भारत में शामिल हो गयीं.

सशक्त भारत के निर्माण में बाधा

हैदराबाद, जूनागढ़ और कश्मीर ये रियासतें भारत के निर्माण में सबसे बड़ी बाधा थीं. जूनागढ़ रियासत पाकिस्तान में शामिल होने की घोषणा कर चुकी थी. वहीँ काश्मीर ने स्वतंत्र राष्ट्र बने रहने की इच्छा व्यक्त की. हैदराबाद राज्य काफी साधन-संपन्न था. इसका नवाब निजाम उस्मान अली खान था. निजाम भी हैदराबाद को आज़ाद रखना चाहता था.

जूनागढ़

जूनागढ़ पश्चिम भारत के सौराष्ट्र इलाके का एक बड़ा राज्य था. वहां के नवाब महावत खान थे. रियासत का ज़्यादातर हिस्सा हिंदुओं का था. मुस्लिम लीग और जिन्ना के इशारों पर जूनागढ़ के दीवान अल्लाहबख्श को अपदस्थ करके बेजनीर भुट्टो के दादा शाहनवाज़ भुट्टो को वहां का दीवान बनाया गया था. शाहनवाज़ भुट्टो ने महावत खान पर दवाब बनाया और इस दबाव में आकर महावत खान ने पाकिस्तान में शामिल होने का ऐलान कर दिया. लेकिन सरदार पटेल ने जूनागढ़ के दो बड़े प्रांत मांगरोल और बाबरियावाड़ पर ब्रिगेडियर गुरदयाल सिंह के नेतृत्व में सेना भेजकर जूनागढ़ पर कब्ज़ा कर लिया. वीपी मेनन और पटेल के इस फैसले से लार्ड माउंटबेटन नाराज़ हो गए. इसके बाद पटेल ने उनको खुश करने के लिए वहां जनमत संग्रह करवाया जिसमें 90% जनता ने भारत में शामिल होने का मत दिया.

हैदराबाद

सरदार पटेल हैदराबाद की आजादी को भारत के पेट में कैंसर की तरह देखते थे. माउंटबेटन चाहते थे कि हैदराबाद, भारत में शांतिपूर्वक मिल जाये और नेहरु भी इस बात का समर्थन करते थे लेकिन पटेल हमले की कार्यवाही करना चाहते थे. इसी बीच हैदराबाद को लड़ाई के लिए उकसाने वाले जिन्ना की 11 सितम्बर 1947 को म्रत्यु हो गयी. पटेल ने इसे मौके का फायदा उठाया और पुलिस कार्यवाही का सहारा लिया. भारतीय पुलिस ने हैदराबाद पर आक्रमण करने के लिए “ऑपरेशन पोलो” चलाया था. जैसे ही भारतीय पुलिस हैदराबाद में घुसी, पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री लियाक़त अली ख़ान ने अपनी डिफ़ेंस काउंसिल की बैठक बुलाई और उनसे पूछा कि क्या हैदराबाद में पाकिस्तान कोई ठोस कदम उठा सकता है? बैठक में मौजूद ग्रुप कैप्टेन एलवर्दी ने साफ इन्कार कर दिया. पांच दिनों के अंदर ही हैदराबाद के रज़ाकारों की कमर टूट गयी और निजाम उस्मान अली ने हार मान ली और विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए. रिपोर्ट के मुताबिक इस अभियान में 27 से 40 हजार जानें गई थीं.

कश्मीर

हैदराबाद और जूनागढ़ के विपरीत इस रियासत के राजा हरी सिंह हिन्दू थे लेकिन वे मुस्लिम बहुल क्षेत्र के राजा थे. बंटवारे के समय कश्मीर के राजा ने स्वतंत्र रहने का निश्चय किया. महाराजा का यह फैसला उस समय गलत सिद्ध हो गया जब जिन्ना के कहने पर 20 अक्टूबर 1947 को कबाइली लुटेरों के भेष में पाकिस्तानी सेना कश्मीर में घुस आयी. उन्होंने दुकानों से लूटपाट शुरू कर दी घरों में चोरी और आगजनी करने के साथ ही महिलाओं को भी अगवा कर लिया और इसी तरह की तबाही मचाते हुए पूर्वी कश्मीर की तरफ बढ़ रहे थे तो महाराजा हरीसिंह ने जवाहरलाल नेहरु से सैन्य मदद मांगी. पटेल ने शर्त रखी कि भारत तभी सहायता देगा जब कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा बनेगा. पाकिस्तानी सेना के भयावह रूप और कश्मीर की हालत को देखते हुए राजा ने शर्त मान ली और 26 अक्टूबर 1947 को दोनों देशों के बीच एक समझौता हुआ. इस समझौते के तहत 3 विषयों रक्षा, विदेशी मामले और संचार को भारत के हवाले कर दिया गया था. तभी से लेकर आज तक कश्मीर भारत और पाकिस्तान के बीच झगड़े की जड़ बना हुआ है.