जानिए प्रथम विश्व युद्ध की ये मुख्य वजह और भारत की इसमें भूमिका

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आप सब ने महाभारत तो देखा ही होगा लेकिन इतिहास के पन्नो पर इस युद्ध को विश्व युद्ध की श्रेणी में नहीं रखा गया. दुनिया जिसे प्रथम विश्व युद्ध मानती है उसे नेचुरल साइंसेज ट्रस्ट ने चुनौती दी है। ट्रस्ट के चेयरमैन प्रियांक भारती ने दावा किया है पहला विश्व युद्ध महाभारत ही है।

लेकिन हम बात उस युद्ध की कर रहे हैं जिसे पूरी दुनिया पहला विश्व युद्ध मानती है.

प्रथम विश्व युद्ध से पहले दुनिया में इतनी बड़ी लड़ाई कभी नही हुई थी इसलिए कहा जाता था कि इस युद्ध के बाद सबकुछ खत्म हो जायेगा अर्थात इसे ” सभी युद्धों को खत्म करने वाला युद्ध ” बताया गया था । लोगो को लगता था कि इस युद्ध के बाद आगे आने वाले 100 सालो तक कोई युद्ध नही होगा प्रथम विश्व युद्ध को द ग्रेट वॉर , ग्लोबल वॉर के नाम से भी जाना जाता है । प्रथम विश्व युद्ध में लगभग 37 देशों ने भाग लिया था इस युद्ध के समय भारत अंग्रेजो ( इंग्लैंड ) का गुलाम था इसलिए भारत के सैनिको ने इंग्लैंड की तरफ से युद्ध किया था । अंग्रेजो ने कहा था कि अगर भारतीय सैनिक इस युद्ध में इंग्लैंड का साथ देते है तो वो भारत को आजाद कर देंगे लेकिन उन्होंने ऐसा नही किया । ये युद्ध 4 साल 3 महीने 11 दिन तक चला . इसमें लगभग 6 करोड़ 50 लाख लोगों ने भाग लिया जिसमें 1 करोड़ 70 लाख लोग शहीद हुए और 2 करोड़ लोग घायल हुए.

प्रथम विश्व युद्ध दो देशों ( ऑस्ट्रिया – हंगरी और सर्बिया ) के मध्य आपस में छोटी सी लड़ाई से शुरू हुआ था । इसके बाद दोनों अपने मित्र देशों से सहायता मागंते है और एक के बाद एक करके बहुत सारे देश इस लड़ाई में शामिल हो जाते है । और यह छोटी सी लड़ाई विश्व युद्ध में बदल जाती है । प्रथम विश्व युद्ध जर्मनी के कारण शुरू होता है और इस युद्ध में जर्मनी की हार होती है । जिस कारण युद्ध खत्म होने के बाद उस पर बहुत सारे प्रतिबन्ध लगा दिए जाते है ।

युद्ध में भारत की भूमिका

जब युद्ध आरम्‍भ हुआ था उस समय भारत अंग्रेजी शासन के अधीन था। यह भारतीय सिपाहियों के पेशेवर होने और उनके अनुशासन का प्रतिबिंब था जो कि भारत के स्‍वयं के संघर्ष के विरुद्ध होते हुए वे सम्‍पूर्ण विश्‍व में अलग-अलग लड़ाईयों में लड़े ताकि वे साम्यवादी रक्षा के भार को सहन करने में अपनी भूमिका निभा सकें।

भारत ने युद्ध के प्रयासों में जनशक्ति और सामग्री दोनों रूप से भरपूर योगदान किया। भारत के सिपाही फ्रांस और बेल्जियम, एडीन, अरब, पूर्व अफ्रीका, गाली पोली, मिस्र, मेसोपेाटामिया, फिलिस्‍तीन, पर्सिया और सालोनिका में बल्कि पूरे विश्‍व में विभिन्‍न लड़ाई के मैदानों में बड़े सम्‍मान के साथ लड़े.

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इस युद्ध की वजहें

राष्ट्रीयता की उग्र भावना

युद्ध का आधारभूत कारण यूरोप के विभिन्न राज्यों में राष्ट्रीयता की भावना थी। कुछ समय के उपरांत इस भावना ने उग्र रूप धारण किया। इसके अंतर्गत राष्ट्रों ने अपनी प्रगति के लिये विशेष रूप से प्रयत्न करने आरंभ किये और उन्होंने अन्य राष्ट्रों के हितों, स्वार्थों तथा उनकी इच्छाओं की और तनिक भी ध्यान नहीं दिया।

रूस और फ्रांस की संधि 

बिस्मार्क द्वारा सम्पन्न जमर्न -रूस संधि का अंत 1900 ई. में हो गया जिसका दाहे राया जाना आवश्यक था किन्तु बिस्मार्क के पतन के उपरांत जर्मन-सम्राट विलियम द्वितीय ने उस संधि का दोहराना जर्मनी के लिये हितकर नहीं समझा। इससे रूस समझ गया कि जर्मनी उसकी अपेक्षा आस्ट्रिया की ओर अधिक आकृष्ट है। 
रूस अकेला रह गया और उसका ध्यान फ्रांस की ओर गया। फ्रांस भी यूरोप में एक मित्र की खोज में था। इसीलिए परिस्थिति से बाध्य होकर उसने 1893 ई. में फ्रांस के साथ संधि की जिसने फ्रांस के अकेलेपन का अंत कर दिया और जर्मनी के विरूद्ध एक गुट का निर्माण हुआ।

फ्रांस और इंगलैंड की संधि

फ्रांस और इंगलैंड में पर्याप्त समय से औपनिवेशिक विषयों के संबंध में बड़ी कटुता उत्पन्न हो गई थी। किन्तु बीसवीं शताब्दी के आरंभ में दोनों जर्मनी की बढ़ती हुई शक्ति से भयभीत होकर एक दूसरे की और आकृष्ट हुये। 1904 ई. में दोनों के मध्य एक समझौता हुआ जो एंगलो फ्रेचं आंता के नाम से विख्यात है।

जर्मनी की पूर्वी नीति

जब जर्मनी अपने साम्राज्य की स्थापना करने में सब ओर से निराश हो गया तो उसका ध्यान पूर्व की ओर आकर्षित हुआ। उसने अपने साम्राज्य के विस्तार के अभिप्राय से इस मार्ग का अनुकरण किया। जर्मनी ने टर्की से मित्रता की और वहां अपने प्रभाव का विस्तार करना आरंभ किया। उसने बाल्कन प्रायद्वीप में आस्ट्रिया की नीति का समर्थन कर रूस की नीति का तथा वहां के राज्यों की राष्ट्रीयता की भावना का विरोध किया। जर्मनी ने टर्की के सुल्तान से बर्लिन-बगदाद रेलवे के निर्माण करने की अनुमति मांगी। 
इस रेलवे द्वारा इंगलैंड के भारतीय साम्राज्य के लिए भय उत्पन्न हुआ। इस रेलवे लाइन के निर्माण के लिये जर्मनी के लिये आस्ट्रिया की मित्रता अनिवार्य थी, क्योंकि यह रेलवे लाइन आस्ट्रिया और उसके प्रभावित इलाकों में से होकर जाती थी। इसी कारण जर्मनी सदा आस्ट्रिया से मित्रता रखने का इच्छुक रहा। 
इस रेलवे लाइन के निर्माण का विरोध यूरोप के अन्य राष्ट्रों ने किया। इसी उद्देश्य से जर्मनी आस्ट्रिया के प्रभाव क्षत्रे को बाल्कन आदि प्रदेशों में अधिक विस्तृत करना चाहता था।

तात्कालिक कारण

आस्ट्रिया, हंगरी और सर्बिया में तनाव तो बोस्निया और हर्जेगोविना की समस्या के कारण ही था, लेकिन इसी बीच 28 जून, 1914 को आस्ट्रिया के राजकुमार ड्यूक पफर्डिनेण्ड की बोस्निया में कुछ क्रांतिकारियों ने हत्या कर दी गई। इस पर आस्ट्रिया ने जो सर्बिया पर आक्रमण करने के लिए किसी अवसर की ताक में था, इस हत्या का सारा दोष उसी पर लाद दिया और जर्मनी से सहायता का आश्वासन पाकर आस्ट्रिया ने सर्बिया को युद्ध की चुनौती दे दी। इधर सर्बिया को रूस से सहायता का आश्वासन मिल गया। फलतः उसने आस्ट्रिया की अनेक शर्तों को ठुकरा दिया। अतः 28 जुलाई 1914 को आस्ट्रिया ने सर्बिया के विरूद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। 
रूस ने सर्बिया का पक्ष लेते हुए अपनी सेना की लामबन्दी की घोषणा कर दी। दूसरी ओर जर्मनी ने आस्ट्रिया का पक्ष लेते हुए 1 अगस्त, 1914 को रूस के विरूद्ध  युद्ध की घोषणा कर दी. 3 अगस्त, 1914 को जर्मनी ने फ्रांस के विरूद्ध  युद्ध की घोषणा कर दी। 4 अगस्त, 1914 को इंग्लैण्ड ने जर्मनी के विरूद्ध  युद्ध की घोषणा कर दी। इस प्रकार प्रथम विश्व युद्ध का भीषण वीभत्स दृश्य देखना पड़ा