वीरभूमि बुंदेलखंड के हमीरपुर जिले के राठ क्षेत्र के बरहरा गांव के निवासी शिवदयाल ने 21 साल की उम्र में सांसद बनने का फैसला किया। संत को जब संसद में सुरक्षा कर्मियों एंट्री करने से रोक दिया तो इन्होंने सुरक्षाबलों के सामने ही प्रण लिया कि अब छह माह के अंदर ही सांसद बनकर इस संसद की चौखट पर कदम रखेंगे और यह कहकर राठ को लौट गए। संत ब्रह्मानंद ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने के लिए जनसंघ पार्टी जॉइन की और चुनाव मैदान आ गए। संभवत: स्वामी जी ने जनसंघ के टिकट से शानदार जीत दर्ज की और सम्मान के साथ संसद में प्रवेश किया।

दरअसल शिवदयाल 21 साल की अवस्था में ही घर छोड़कर संन्यासी बन गए थे। बता दें ये लोधी जाति के थे। स्वामी के पिता किसान थे। शिवदयाल बुंदेलखंड क्षेत्र में स्वामी ब्रह्मानंद के नाम से विख्यात हुए। पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष लक्ष्मीनारायण सिंह ने बताया कि 7 सितम्बर साल 1966 में देश की संसद भवन के मेन गेट पर दोपहर में पांच सौ साधु-संतों के साथ गो वध आंदोलन को लेकर स्वामी धरने पर बैठे थे। धरने में सामूहिक रूप से लिए गए फैसले के बाद स्वामी ने संसद में जैसे ही कदम रखा तो वहां पर मौजूद सुरक्षा कर्मियों ने रोकते हुए कहा की आप लोग महात्मा संत हैं और संसद में इस प्रकार प्रवेश करना गलत है। संसद के अंदर जाना है तो वैधानिक रूप से चुनकर संसद भवन में आइए और तब आपको ससम्मान प्रवेश करने पर स्वागत किया जाएगा। सुरक्षा कर्मियों की बातें सुनने के बाद स्वामी ब्रह्मानंद ने पांच सौ साधु-संतों व सुरक्षा कर्मियों के सामने सौगंध खाई कि आज से छह माह के बाद इसी गेट से सांसद के रूप में निर्वाचित होकर प्रवेश किया जाएगा। इतना कहने के बाद स्वामी वहां से वापस प्रस्थान कर गए। वापिस लौटने के बाद वह सात दिनों तक अपनी कुटिया में रहे, लेकिन उस दौरान उन्होंने किसी से भी मुलाकात नहीं की।

वर्ष 1967 में हमीरपुर संसदीय क्षेत्र में आम चुनाव में स्वामी ब्रह्मानंद ने जनसंघ पार्टी जॉइन की और चुनाव मैदान में आ गए। कांग्रेस की धूम के बीच पहली बार में स्वामी ने 54.1 फीसदी वोट हासिल कर निर्वाचित हो गए। हालाकि यहां की सीट 1952 से 1962 तक कांग्रेस के कब्जे में रही है। यही नहीं कांग्रेस को सबक सिखाने के लिए स्वामी ने संसदीय क्षेत्र के पांचों विधानसभा क्षेत्रों में भी कांग्रेस के गढ़ में सेंधमारी की। जिससे जनसंघ पार्टी के खाते में पांच सीटें आई थीं। संत ब्रह्मानंद के करीबी रहे पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष लक्ष्मीनारायण सिंह ने बताया कि सांसद बनने के बाद भी स्वामी अपने हाथ से पैसों को हाथ तक नहीं लगाया था। पूरा संसदीय क्षेत्र चुनाव में जनसंघ मय हो गया था। संसदीय क्षेत्र में जनादेश के बाद स्वामी ब्रह्मानंद ने छह माह के अंदर सांसद बनने की प्रतिज्ञा पूरी कर लोकसभा पहुंचे थे। जिसके बाद सुरक्षा कर्मियों की मौजूदगी में फूल बरसाकर संत ब्रह्मानंद का स्वागत किया गया था। इस बात का उल्लेख ‘संसद में प्रवेश’ नामक संस्मरण में है।
सन 1969 में भारत के इतिहास में पहली बार वीवी गिरि को राष्ट्रपति पद के लिए निर्दलीय प्रत्याशी बनाया गया था। तत्कालीन पीएम इन्दिरा गांधी वीवी गिरि के लिए तैयार नहीं थीं। कांग्रेस ने अपनी तरफ से नीलम संजीव रेड्डी को प्रत्याशी घोषित किया था। तब स्वामी ने सब के सामने भविष्यवाणी करते हुए कहा कि वीवी गिरि ही राष्ट्रपति निर्वाचित होंगे। स्वामी तीन बार इन्दिरा गांधी से मिले औैर जनसंघ के सांसद होते हुए भी वीवी गिरि के पक्ष में चुनाव प्रबन्धन संभाला। जिससे निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में वीवी गिरि आखिरकार राष्ट्रपति के रूप में निर्वाचित हुए।