आखिर क्या है युक्रेन और रूस विवाद , जानिए क्या है पूरा मामला

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2011

पहला और दूसरा विश्व युद्ध आखिर किसको याद नहीं होगा . एक ऐसी जंग जिसने पूरे विश्व में ऐसी भयावह स्थिति पैदा की जिसका परिणाम विश्व के कुछ देश आज तक भुगत रहे हैं . लेकिन आज फिर से कुछ परिस्थितियां ऐसी नजर आ रही हैं जो जाने -अनजाने पूरे विश्व को तीसरे विश्व युद्ध की ओर धकेल रही हैं . जी हाँ ! युक्रेन और रूस के बीच जो परिस्थितियां बन रही हैं वो तीसरे विश्व युद्ध की ओर इशारा कर रही हैं .पूरे विश्व में इस समय युक्रेन और रूस के विवाद को लेकर चर्चा जोरों पर है लेकिन आखिर ये विवाद है क्या ? इस विवाद की जड़ कहां से है ? और अब स्थिति क्या है ? सभी के मन में सवाल आना लाजमी है . तो आइये आपको समझाते हैं पूरा मामला क्या है .

यहाँ से शुरू हुआ था पूरा विवाद

शुरुआत होती है साल 1991 से , साल 1991 में USSR यानि ‘सोवियत संघ समाजवादी गणराज्य‘ टूट कर 15 देशों में बंट गया . जब ये सोवियत संघ टूटा तब इसमें सबसे बड़ा देश बना रूस और बाकि 14 छोटे – छोटे अन्य देश बने . इन्ही छोटे – छोटे देशों में शामिल था युक्रेन . जी हाँ ! ये वही युक्रेन है जिसकी इस समय रूस से झड़प चल रही है . दरअसल रूस युक्रेन पर अपना कब्जा जमाना चाहता है . अगर आप मैप देखेंगे तो आपको समझ आएगा की युक्रेन देश का आधा हिस्सा यूरोप के अंदर है और रूस को लगता है कि यूरोप युक्रेन में जो प्राकृतिक गैस भंडार हैं उन पर कब्जा कर लेगा . कहीं न कहीं रूस का जो डर है वो सही भी है क्योंकि , यूरोप ने ऐसा किया भी है . तो अब हुआ कुछ यू था कि साल 2014 में युक्रेन के एक हिस्से जिसका नाम क्रीमिया है उस पर रूस ने अपना कब्जा जमा लिया था . जिस समय रूस ने क्रीमिया पर अपना दावा बोला उस समय भी हालात बिल्कुल युद्ध जैसे हो गये थे .लेकिन रूस ने बड़ी चालाकी के साथ बिना युद्ध किये क्रीमिया पर अपना कब्जा जमा लिया जिससे क्रीमिया रूस का हिस्सा बन गया .

क्रीमिया के बाद अब इन इलाको पर जमाया कब्ज़ा

अब रूस का इतने हिस्से से भी पेट नहीं भरा की अब फिर से रूस ने युक्रेन के दो और हिस्से पर हमला बोल दिया उसे अपने कब्जे में करने के लिए और ये दोनों हिस्से थे डोनेत्स्क और लुहंस्क . इन दोनों हिस्सों को डॉनबास रीजन के नाम से जाना जाता है . यानि पहले तो रूस ने युक्रेन के क्रीमिया हिस्से को कब्जा लिया और अब वो डॉनबास के इलाके में भी घुस चुका है . लेकिन अब यहाँ एक सवाल और भी आता है कि जब रूस के सैनिक युक्रेन के इस हिस्से में घुसते हैं तो युक्रेन के इस इलाके के लोग इसके खिलाफ क्या कदम उठाते हैं ? तो बात ऐसी है कि 1991 से पहले ये पूरा इलाका एक ही था . ये तो 1991 में 15 देशों में बंट गया . तो युक्रेन के डॉनबास इलाके में अभी भी रशियन मूल के लोग रहते हैं जो चाहते हैं कि वो रूस में शामिल हो जाए . डॉनबास के लोगों को इससे कोई तकलीफ नहीं है. जिससे रूस को इस इलाके में घुसने में कोई परेशानी ही नहीं हुई . इस इलाके में जो लड़ाई चल रही है वो चल रही है युक्रेन की सेना की और उन रशियन मूल के लोगों की जो रूस में शामिल होना अच्छा समझते हैं . जो डॉनबास के लोग रूस में मिलना चाहते हैं उन्हें ‘रशियन अलगाववादी ‘ कहा जाता है . और काफी देशों का ये मानना है कि ‘ रशियन अलगाववादी ‘ को रूस द्वारा भड़काया जा रहा है इसलिए वो रूस के साथ मिलना चाहते हैं . और ऐसा कहने वाले देशों में शामिल है अमेरिका , फ़्रांस , यूके और जर्मनी .

क्या है NATO ? जो दे रहा है युक्रेन का साथ

लेकिन अब यहाँ सबसे बड़ा सवाल ये उठता है कि इन जगहों पर ऐसा क्या है जो ये देश आपस में लड़-भिड रहे हैं तो इसे समझना भी बहुत ज़रूरी है . दरअसल बात ऐसी है कि युक्रेन का एक हिस्सा जिसका नाम ‘ क्रीमिया ‘ है उस जगह प्राकर्तिक गैसों का भंडार है . जो क्रीमिया से युक्रेन के रास्ते यूरोप में बिकने जाती है और यूरोप चाहता है की उन गैसों को यूरोप अपने कंट्रोल में रखे . वही रूस चाहता है कि जो क्रीमिया के प्राकृतिक संसाधन है उन पर बस उसका अधिकार रहे . लेकिन अब उस जगह जहाँ गैस के भंडार हैं कुँए हैं उन्हें अपने कब्जे में लेने के लिए यूरोप चाहता है कि युक्रेन को ‘NATO ‘ यानि ‘ नॉर्थ ऍटलाण्टिक ट्रीटी ऑर्गनाइज़ेशन ‘का हिस्सा बना लिया जाए . तो अब आपके मन में सवाल उठ रहा होगा की ये कौन सी नई बला है तो ये अमेरिका का एक संगठन है जिसमें पहले 12 सदस्य देश शामिल थे लेकिन अब इसमें 30 देश शामिल हो चुके हो चुके हैं . तो अब ‘नाटो’ के सदस्य देशों का ये कहना है कि अगर हम देशों में से किसी पर भी हमला होता है तो उसे सीधा – सीधा अमेरिका पर हमला माना जाएगा और अमेरिका खुद इस उनकी तरफ से लड़ाई में आएगा . साथ ही सभी नाटो देश एक साथ हो जाएँगे . और यही कारण है कि युक्रेन जल्द से जल्द ‘नाटो ‘ का सदस्य बनना चाहता है ताकि अगर रूस उनपर हमला करने की सोचे या करे तो उनके पिता श्री यानि अमेरिका लाठी लेकर रूस के सामने खड़ा हो जाए .और ऐसा हुआ भी था अमेरिका की तरफ से रूस को साफ -साफ बोला गया था कि अगर रूस ने ज्यादा चालाकी दिखाने की कोशिश की और युक्रेन के डॉनबास वाले इलाके पर अपना कब्जा ज़माने की सोची तो अमेरिका अपने 2 लड़ाकू पानी जहाज ‘ब्लैक सी ‘ में भेज देगा . ब्लैक सी यानि काला सागर क्रीमिया के बिल्कुल नीचे है ब्लैक सी के नीचे टर्की है तो अगर अमेरिका अपने लड़ाकू जहाज ब्लैक सी में भेजता है तो उसे टर्की से 14 दिन पहले अनुमति लेनी होगी . क्योंकि वो जहाज टर्की के रास्ते ही ब्लैक सी में जा सकते हैं .

अपने दुश्मन देशों से घिर जाएगा रूस

अगर बाद अभी की करें तो कुछ समय पहले से ही रूस के 1 लाख 25 हजार सिपाहियों ने युक्रेन को चारों तरफ से घेर लिया था . दरअसल इस वक्त मामला ये है कि युक्रेन जल्द से जल्द नाटो का सदस्य बनाना चाहता है और रशिया ऐसा नहीं होने देना चाहता. इसके पीछे का कारण तो आपको पता ही है कि नाटो अमेरिका और कुछ और देशों का वो गुट है जो रूस का कट्टर दुश्मन माना जाता है . अब रूस का नाराज होना भी लाजमी क्योंकि युक्रेन रूस का पड़ोसी देश है और वो पहले सोवियत संघ का हिस्सा भी था . लेकिन अब युक्रेन रूस के दुश्मन नाटो का हिस्सा बनाना चाहता है . क्योंकि पहले ही रूस के बहुत सारे पड़ोसी देश ‘नाटो ‘ का हिस्सा बन चुके हैं तो रूस को तो ये बात खटकनी ही है . और अगर युक्रेन भी ‘ नाटो ‘ की गोदी में जा कर बैठ जाता है तो रूस चारों तरफ से अपने दुश्मनों से घिर जाएगा . इस पूरे विवाद ने अब नए युद्ध का आगाज कर दिया है . युक्रेन की पूर्वी और उत्तर पूर्वी सीमा पर सैनिक उतारने के साथ रूस ने ब्लैक सी में भी अपने लड़ाकू जहाजों को उतार दिया है . रूस ने युक्रेन को हर तरफ से घेर लिया है . इस पूरे विवाद में चीन रूस का साथ दे रहा है . वहीं दूसरी और अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देश युक्रेन के समर्थन में आ गये हैं .

दूसरे विश्व युद्ध में युक्रेन के जरिये ही रूस ने की थी अपनी सीमा की रक्षा

शायद आपको न पता हो लेकिन दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जब रूस पर हमला हुआ था तब युक्रेन ही वो जगह थी जहाँ से रूस ने अपनी सीमा की रखवाली की थी . और अगर युक्रेन रूस के हाथ से निकल जाता है तो अमेरिका रूस पर हावी रहेगा . दुश्मन देशों की दूरी रूस के लिए न के बराबर रह जाएगी . ये विवाद किसी के लिए भले ही करेले की सब्जी जैसा कड़वा हो लेकिन अमेरिका के राष्ट्रपति के लिए ये पूरा मामला खीर पूरी जैसा है क्योंकि जो बिडेन के लिए ये विवाद एक लौटरी साबित होने वाला है जो बिडेन की पिछले कुछ मामलों के चलते जो लोकप्रियता कम हुई थी वो उसे दोबारा से हासिल करना चाहते हैं और इससे अच्छा मौका उनके लिए कोई और नहीं हो सकता . वो फिर एक बार खुद को हीरो बनाना चाहते हैं .

पूरे विवाद में क्या है भारत की स्थिति

युक्रेन भी सीधे – सीधे रूस से लड़ाई नहीं ले सकता वो इस बात को भलीभांति जानता है कि वो रूस के सामने 2 मिनट भी नहीं टिक पाएगा क्योंकि रूस की ताकत उससे लाख गुना ज्यादा है . इस विवाद में भारत की स्थिति देखी जाए तो सच में भारत अमेरिका और रूस के बीच फस गया है . क्योंकि भारत और अमेरिका के रिश्ते अब काफी अच्छे हो चुके हैं वहीं दूसरी और पुतिन मोदी जी के काफी अच्छे दोस्त हैं . भारत 50 % से 55 % तक हथियारों को रूस से लेता है . वही भारत के लिए युक्रेन कारोबार के हिसाब से काफी ज्यादा महत्वपूर्ण हैं . यहां भारत सच में फस चुका है वो किसी भी देश से अपने रिश्ते खराब नहीं करना चाहता .