इस खूबसूरत म्यूज़ियम को बनाया जा रहा है मस्जिद तुर्की के राष्ट्रपति ने किया था ऐलान

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गुम्बदों वाली एक ऐसी ऐतिहासिक इमारत की दास्ताँ जो इस्तांबुल में बॉस्फ़ोरस नदी के पश्चिमी किनारे पर स्थित है. ये वो नदी है जो एशिया और यूरोप की हदें तय करती है. इस नदी के पूर्व की तरफ़ एशिया और पश्चिम की ओर यूरोप है. हागिया सोफ़िया (Hagia Sophia) को लातिनी ज़ुबान में सैंक्टा सोफ़िया, तुर्की ज़ुबान में आया सोफ़िया और अंग्रेजी में सेंट सोफ़िया के नामों से पुकारा जाता है.

तर्कि‍श राष्‍ट्र पूरी दुन‍िया में एकमात्र मुस्‍लिम सेक्‍यूलर देश है. यह गौरव करने वाली बात है और हागि‍या सोफ‍िया म्यूज़ियम इस गौरव का प्रतीक है. लेकिन इस गौरव को अब छीना जा रहा है. हाल ही में तुर्की के सुप्रीम कोर्ट ने इस्तांबुल के इस म्यूजियम को मस्जिद में तब्‍दील करने का फैसला सुनाया है. इस फैसले के बाद तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैयब एर्दोगान का इस्‍लामि‍क कट्टरता वाला रुख भी स्‍पष्‍ट हो गया. हागिया सोफिया सभी धर्म और आस्था के लोगों के लिए सेक्युलरिज्म का प्रतीक रही है. तुर्की की यह इमारत पूरी दुनिया को यह संदेश देती है कि यह देश धर्मनिरपेक्ष हैं लेकिन अब इसे मस्जिद में तब्दील किया जा रहा है. तुर्की को दुनिया अब एक अलग ही नज़र से देख रही है. पहले चर्च, फिर मस्जिद और इसके बाद म्यूज़ियम बनी ये इमारत लेकिन तुर्की ने सुप्रीम कोर्ट का सहारा लेकर उसे फिर से मस्जिद में तब्दील कर दिया है. आइए जानते हैं इसकी दिलचस्प और रहस्यमयी बातें

हागिया सोफिया का इतिहास

हागि‍या सोफि‍या को रोमन साम्राज्‍य के दौरान साल 360 में बनाया गया था. इसके बाद आग लगने की एक घटना के बाद इसे दोबारा उसी रूप में बनाया गया था जो स्‍वरुप अभी इसका है. इस लोकप्र‍िय इमारत का निर्माण एक चर्च के रूप में हुआ था. 1453 में जब इस शहर पर इस्लामी ऑटोमन साम्राज्य ने कब्जा किया तो इमारत को ध्वस्त कर दिया गया और इसे मस्जिद बना दिया गया. इसके बाद अतातुर्क ने 1934 में मस्जिद को म्यूजियम में बदल दिया क्योंकि वह धर्म निरपेक्ष राज्य चाहते थे . तुर्की के इस्लामी और राष्ट्रवादी समूह लंबे समय से हागिया सोफिया को मस्जिद में बदलने की मांग कर रहे थे.

एर्दोगान के फैसले से तुर्की को अंतर्राष्ट्रीय चेतावनी भी मिली थी जिसमें कहा गया था कि 1500 वर्ष पुराने भवन की पहचान में कोई बदलाव न किया जाए. हागिया सोफिया 900 साल तक चर्च के रूप में पहचानी गई है. सन 1934 में इसे संग्रहालय में बदला गया और अब इसे यूनेस्को की विश्व धरोहर के रूप में जाना जाता है. तुर्की सरकार के इस फैसले से दुनियाभर में धार्मिक और राजनीतिक नेताओं ने इसकी आलोचना की है. एर्दोगान ने इस फैसले को लेकर कोई दुख नहीं जताया उनका कहना है कि जो भी इस फैसले का विरोध करता है वह तुर्की की संप्रभुता पर हमला कर रहा है.

अंतरराष्ट्रीय बिरादरी का कहना है कि यह इमारत मानवता के अधीन है इसलिए इस इमारत में कोई बदलाव नहीं किया जाना चाहिए उनका कहना है कि यह दो विश्वासों के बीच एक पुल की तरह काम करता है और यह दो धर्मों के साथ-साथ फलने-फूलने का प्रतीक है.

इन देशों ने किया विरोध

ग्रीस तुर्की का पडोसी मुल्क है जिसने इसका विरोध सबसे ज्यादा किया है. ग्रीस ने कहा कि तुर्की का यह कदम यूनेस्को के विश्व सांस्कृतिक और प्राकृतिक विरासत के संरक्षण संबंधी कन्वेंशन का उल्लंघन है. हागिया सोफिया विश्व भर के लाखों ईसाईयों के लिए आस्था का केंद्र है इसलिए तुर्की में इसका प्रयोग राजनीतिक लाभ प्राप्त करने के लिए नहीं होना चाहिए.

अमेरिका ने चेताया था कि हागिया सोफिया संग्रहालय की स्थिति में कोई भी बदलाव ना हो.ऐसा करने से अलग-अलग परंपराओं और संस्कृतियों के बीच एक सेतु के रूप में सेवा करने की उसकी क्षमता कमजोर हो जाएगी.

यूनेस्को ने भी इस फैसले को लेकर दुख जताया है. इसने कहा है कि तुर्की के अधिकारी बिना देरी किए जल्दी से इस संबंध में संस्थान से बात करें. साथ ही आग्रह किया है कि तुर्की बिना चर्चा के इस संग्रहालय की स्थिति को न बदले.

रूस में स्थित गिरजाघर ने तुर्की सरकार के इस फैसले पर दुख जताते हुए कहा है कि हागिया सोफिया पर शासन करने के अधिकार से कोर्ट को खुद को दूर रखना चाहिए. इसने कहा है कि कोर्ट का यह फैसला समाज को विभाजित करेगा.