
भारत ने अंतरिक्ष में महाशक्ति हासिल करते हुए पृथ्वी की निचली कक्षा में 300 किलोमीटर दूर एक सैटलाइट को मार गिराया है। भारतीय वैज्ञानिकों ने इस अभियान को ‘मिशन शक्ति’ नाम दिया था। जानें, भारतीय रक्षा अनुसंधान संगठन यानि DRDO के वैज्ञानिकों ने महज 3 मिनट में कैसे दिया इस मिशन को अंजाम…
क्या था मिशन शक्ति?
भारत ने एपीजे अब्दुल कलाम द्वीप लॉन्च कॉम्प्लेक्स से ऐंटी-सैटलाइट मिसाइल का परीक्षण किया। यह डीआरडीओ की ओर से एक तरह का तकनीकी मिशन था। मिसाइल के परीक्षण के लिए जिस सैटलाइट का इस्तेमाल किया गया, वह भारत के उन सैटेलाइट्स में से है, जो पहले ही पृथ्वी की निचली कक्षा में मौजूद हैं। इस परीक्षण के तहत डीआरडीओ ने अपने सभी तय लक्ष्यों को हासिल किया। – भारत ने इस मिशन को पूरी तरह स्वदेशी तकनीक के जरिए अंजाम दिया। ऐंटी सैटलाइट मिसाइल भी स्वदेश निर्मित ही था जिसके पूरे होने के साथ ही भारत अंतरिक्ष में ताकत के मामले में अमेरिका, रूस और चीन के क्लब में शामिल हो गया है।
कौन सा सैटलाइट किया गया इस्तेमाल?
– इस मिशन में पूरी तरह से भारत में तैयार ऐंटी-सैटलाइट मिसाइल का इस्तेमाल किया गया। इसमें डीआरडीओ के बलिस्टिक मिसाइल डिफेंस इंटरसेप्टर का इस्तेमाल किया गया था।

क्या इस परीक्षण से स्पेस से कोई मलबा गिरेगा?
– इस परीक्षण से पैदा हुआ मलबा आने वाले कुछ सप्ताह में धरती पर गिरेगा, यह आसमान में नहीं फैलेगा। इससे पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं होगा।
भारत ने यह परीक्षण क्यों किया?
भारत लंबे समय से स्पेस में सफलताएं हासिल कर रहा है। बीते 5 सालों में यह रफ्तार और तेज हुई है। मंगलयान मिशन की सफल लॉन्चिंग हुई है। इसके बाद सरकार ने गगनयान मिशन को भी मंजूरी दी है। भारत ने इस परीक्षण की सफलता को लेकर पूरी तरह विश्वस्त होने के बाद ही इसे अंजाम दिया।
क्या भारत अंतरिक्ष में हथियारों की रेस में शामिल हो गया?
भारत का बाहरी अंतरिक्ष में हथियारों की रेस में शामिल होने का कोई इरादा नहीं है। यह सिर्फ इसलिए किया गया ताकि कोई संदिग्ध सैटलाइट भारतीय अंतरिक्ष सीमा में प्रवेश न कर सके। इससे दुश्मन देशों के लिए भारत की जासूसी करना मुश्किल होगा। इसके अलावा अंतरिक्ष में भारत के संसाधनों की भी सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकेगी।
क्या यह परीक्षण किसी देश के खिलाफ है?
भारतीय रक्षा अनुसंधान संगठन के वैज्ञानिकों का यह परीक्षण किसी देश के खिलाफ नहीं है। भारत की अंतरिक्ष क्षमताएं किसी देश के खिलाफ नहीं है और न ही इनका कोई सामरिक उद्देश्य है।
अग्नि मिसाइल और एएडी (अडवांस्ड एयर डिफेंस) का मिश्रण है
रक्षा विश्लेषकों के मुताबिक ऐंटि सैटलाइट ए-सैट मिसाइल सिस्टम अग्नि मिसाइल और अडवांस्ड एयर डिफेंस (AAD) सिस्टम का मिश्रण है। भारत ने वर्ष 2012 के आसपास ही इन दोनों को मिलाकर अपना ऐंटि सैटलाइट ए-सैट मिसाइल सिस्टम बना लिया था लेकिन राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी की वजह से इसका परीक्षण नहीं कर रहा था। हालांकि मोदी सरकार ने राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखाई और परीक्षण को अपनी अनुमति दी।
साल 2012 में डीआरडीओ के तत्कालीन चीफ वीके सारस्वत ने स्वीकार किया था कि अग्नि-5 मिसाइल के सफल परीक्षण के बाद भारत के पास सैटलाइट को मार गिराने की क्षमता है। उन्होंने कहा था, ‘ऐंटी सैटलाइट सिस्टम को अच्छे बूस्ट की जरूरत होती है। यह करीब 800 किमी है। अगर आप 800 किमी तक पहुंच सकते हैं और आपके पास निर्देशन प्रणाली है तो अंतरिक्ष में सैटलाइट को मार गिराया जा सकता है। अग्नि-5 में यह क्षमता मौजूद है।’ उन्होंने कहा था कि भारत ने ऐंटी मिसाइल टेस्ट करके अपनी निर्देशन प्रणाली का टेस्ट पहले ही कर लिया है।
भारत ने किसी संधि का उल्लंघन नहीं किया
अंतरिक्ष विज्ञानी अजय लेले के मुताबिक यह सैटलाइट संभवत भारत का ही रहा होगा। बेकार हो गया होगा, उसे पहचाना गया और फिर सफलता से गिराया गया। अंतरिक्ष के लिए आउटर स्पेस ट्रिटी है। इसके तहत आप अंतरिक्ष में हथियारों का परीक्षण नहीं कर सकते हैं। भारत ने किसी संधि का उल्लंघन नहीं किया। 2007 में चीन ने भी ऐसा किया था। स्पेस में इससे काफी कचरा फैला था। भारत का परीक्षण कम ऊंचाई पर हुआ है, इसलिए अनुमान है कि गुरुत्वाकर्षण बल के कारण यह नीचे गिरकर नष्ट हो जाएगा।
जानें- कैसे काम करता है ऐंटी सैटलाइट मिसाइल
ऐंटी सैटलाइट मिसाइल के अंदर बारूद नहीं होता। इसे काइनैटिक किल वेपन भी बोलते हैं। सामान्य मिसाइल के टिप पर वॉरहेड लगाते हैं। लक्ष्य पर टकराने के बाद ब्लास्ट होता है, जबकि ऐंटी सैटलाइट मिसाइल काइनैटिक किल मैकेनिज्म पर काम करती है। इसके वॉरहेड पर एक मेटल स्ट्रिप होता है। सैटलाइट के ऊपर मेटल का गोला गिर जाता है और वह उसे गिरा देता है।