कहा तो जा रहा है कि CAA के खिलाफ शाहीन बाग़ में जो प्रदर्शन हो रहा है वो शांतिपूर्ण है. लेकिन वो कितना शंतिपिर्ण है उसका नज़ारा शुक्रवार को देखने को मिला जब न्यूज नेशन के पत्रकार वहां रिपोर्टिंग करने पहुंचे. शाहीन बाग़ में महिलायें तो धरने पर बैठी है और पुरुष गुं’डा’ग’र्दी कर रहे हैं. रिपोर्टिंग करने पहुंचे दीपक चौरसिया पर भीड़ ने जा’नले’वा ह’म’ला कर दिया और कैमरे को भी तोड़ दिया.
CAA के खिलाफ प्रदर्शनों को लोकतंत्र की लड़ाई बताया जा रहा है लें ऐसा लोकतंत्र बचाने के लिए ये कैसी लड़ाई जहाँ लोकतंत्र के चौथे खम्भे मीडिया पर ही जा’नले’वा ह’म’ला कर दिया जाए? इस हमले में कोई भी अनहोनी होने से बच गई और दीपक चौरसिया बाल बाल बच गए. वरना कुछ भी हो सकता था.
सुन रहे हैं कि संविधान ख़तरे में है, सुन रहे हैं कि लड़ाई प्रजातंत्र को बचाने की है! जब मैं शाहीन बाग की उसी आवाज़ को देश को दिखाने पहुँचा तो वहाँ मॉब लिंचिंग से कम कुछ नहीं मिला! #CAAProtests #ShaheenBagh pic.twitter.com/EhJxfWviTp
— Deepak Chaurasia (@DChaurasia2312) January 24, 2020
मीडिया पर हुए ह’म’ले की निंदा करने में वामपंथी और तथाकथित निष्पक्ष मीडिया को शब्द भी नहीं मिल रहे. अपने ही लोगों द्वारा किये गए ह’म’ले को भी वामपंथी मीडिया ने अगर-मगर, किन्तु-परन्तु करते हुए डिफेंड करने की कोशिश की.
शाहीन बाग़ में जो प्रदर्शन चल रहा है उसे चाहे कितना भी शांतिपूर्ण साबित करने की कोशिश की जाए लेकिन सच तो यही है कि इस प्रदर्शन का एक एजेंडा है और वो एजेंडा कोई लोकतंत्र बचाने की लड़ाई की नहीं है बल्कि उसका मकसद देश विरोधी गतिविधियों को हवा देना ही है. शाहीन बाग़ में महिलायें पिछले एक हफ्ते से सड़क घेर कर बैठी हैं जिस कारण इलाके में रहने वाले लोगों को काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है. कोर्ट ने पुलिस को रास्ता खुलवाने का आदेश दिया है लेकिन अभी तक पुलिस कोई सख्त कारवाई करने की बजाये प्रदर्शनकारी महिलाओं को समझाने में लगी है.