एक कहावत है… “पूत कपूत तो क्या धन संचय, पूत सपूत तो क्या धन संचय” मतलब यह कि अगर बेटा नालायक है तो आपका जोड़ा हुआ पैसा बर्बाद कर देगा और अगर बेटा लायक होगा तो खुद कमा कर घर भर देगा, तो बेटे को पहले अच्छा इंसान बनाइये उसे इस लायक बनाइये कि उसे आपके या अपने ससुराल वाले के पैसे का मोहताज ना रहना पड़े.. जैसा नॉएडा के पास पीपलका गाँव के रहने वाले तेजपाल सिंह ने अपने बेटे सचिन नागर को बनाया..सचिन पढ़ा लिखा जिम्मेदार लड़का है.. अभी हाल ही में उनकी शादी हुई.. वैसे तो शादी सिर्फ लड़के लडकी के लिए ही यादगार होती है पर उनकी यह शादी सबके लिए अनूठी और यादगार बन गई… मात्र 101 रूपये का शगुन लेकर सचिन अपनी दुल्हनिया ले आये..
नॉएडा के पास के ही एक गाँव पीपलका में रहने वाले सचिन की शादी 2 महीने पहले सिंकंदराबाद की एक लडकी से तय हुई थी.. अपनी शादी में तो उन्होंने 101 का शगुन लिया ही.. उनकी सगाई भी मात्र 101 का शगुन देकर हुई थी.. सचिन के पिता तेजपाल सिंह नागर ने बताया कि उन्होंने पहले ही तय कर लिया था कि वो अपने बेटे की शादी में दहेज़ नहीं लेंगे.. और उन्होंने ऐसा किया भी.. बेटे की शादी में ना कोई फ़ालतू खर्चा खुद किया ना लडकी वालों को करवाया.. ना कोई फर्नीचर.. ना कैश… ना गाडी.. इस शादी में “दुल्हन ही दहेज़ है” वाली कहावत को सार्थक कर दिया
सचिन के पिता तेजपाल सिंह कहते हैं वो खुद संपन्न हैं और उनका बेटा काबिल है अपने पैरों पर खड़ा है.. उन्हें किसी और के पैसों या दहेज़ की कोई आस नहीं है.. इसलिए उन्होंने पहले ही निश्चय कर लिया था कि वो बेटे सचिन की शादी में कोई दहेज़ नहीं लेंगे. दहेज़ एक कुप्रथा है और इसके खिलाफ आवाज उठाने के लिए हमें अपने घर से ही शुरुआत करनी पड़ेगी तभी बदलाव आएगा.
ना जाने कितनी गरीब लड़कियां दहेज़ ना दे पाने के कारण कुंवारी रह जाती हैं.. कभी माँ बाप को घर बेचना पड़ता है.. कभी जमीन तो कभी कर्जा लेना पड़ता है.. जैसे तैसे बेटियों की शादी हो भी जाये तो शादी के बाद भी उनकी मांगें खत्म नहीं होती.. लडकी को दहेज़ के लिए रोज प्रताड़ित किया जाता है.. और कभी कभी उसे जान से ही मार दिया जाता है.. बाप की ज़मीन भी चली जाती है और उसकी बेटी भी.. और इसी वजह से माँ बाप लड़कियों को बोझ समझते हैं
अभी हाल ही में हमने आपको दतिया की शिवांगी अग्रवाल की कहानी बताई थी.. जिससे शादी में फेरे हो जाने के बाद दहेज़ की मांग की गई थी.. और लडकी ने दुल्हे के साथ जाने से मना कर दिया..

शिवांगी के इस फैसले को सबने सराहा और सचिन के फैसले को भी जिनके पिता ने कहा कि दहेज़ प्रथा को ख़त्म करने के लिए हमें सबसे पहले शुरुआत अपने घर से ही करनी पड़ेगी.. तेजपाल सिंह का यह फैसला समाज के लिए मिसाल है और एक सीख भी कि जहाँ दिल के रिश्ते जुड़ रहे हो वहां पैसे को अहमियत ना दी जाये.. ये दोनों कहानिया समाज में बदलाव की गवाही दे रही हैं कि कैसे लोग पुरानी रूडिवादी सोच से बाहर निकल रहे हैं.. बेहतर बदलाव लेकर आ रहे हैं.. अगर आपके पास भी कोई ऐसा इंसान या कोई ऐसी कहानी है जिससे समाज को प्रेरणा मिल सके आप हमें जरूर बताएं.
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